शनिवार, जुलाई 27, 2024
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एक गाना कैसे लिखा जाता है?

यहां पर बात फिल्मी गीतों के ऊपर हो रही है, इसके अंदर भी हिंदी फिल्मों के गानों की बात बताई गई है।

हिंदी सिनेमा के इतिहास में आजतक 95% गाने धुन के ऊपर लिखे गए हैं। मतलब कि पहले उस गाने की धुन बनाई गई है और उसपर गाना लिखा जाता है।असल में ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि संगीतकार जो की धुन बनाता है, वो अपनी सहूलियत के हिसाब से गीत को ढाल सके व मनपंसद धुन पर ही गीत बना सके। इसके बाद इसी बनी बनाई धुन पे गीतकार शब्द डालता है ।

अधिकतर गाने जो हमने आपने सुने हैं वो सीधे सीधे धुन के ऊपर लिखे हुए हैं।

किसी गाने में मुख्यत दो हिस्से होते हैं :

१.मुखड़ा

२. अंतरा

१. मुखड़ा:किसी गाने का मुखड़ा उस गाने का आधार है।यह वो पंक्ति है जिससे अधिकतर समय गाना या तो शुरू हो रहा है या ख़तम हो रहा है।यह पंक्ति बार बार गाने में आती है।उदाहरण :एक मशहूर गाना है “क्या हुआ तेरा वादा” ।अब इस गाने का मुखड़ा भी “क्या हुआ तेरा वादा ” वाली पंक्ति ही है।

अब असल में संगीतकार जब कोई धुन बनाता है तो वह अधिकतर समय गाने के मुखड़े की ही धुन बनाता है।फिर इसके बाद इसी धुन से मिली हुई या जुड़ी हुई कोई ऐसी धुन बनाता है जो मूल धुन में आकर ख़तम हो जाए।इस दूसरी धुन पे अंतरा लिखा जाता है।

२.अंतरा: किसी गाने के मुखड़े के बाद जो उसकी पंक्तियां होती है उन्हें अंतरा कहते हैं।अंतरे की धुन मुखड़े की धुन से मिली जुली या अलग होती है।अधिकतर समय अंतरे की धुन का खात्मा मुखड़े की धुन में होता है।उदाहरण: “क्या हुआ तेरा वादा” गाने में अंतरा ये वाली पंक्ति है” याद है मुझको तूने कहा था” ।किसी गाने में दो ,तीन अंतरे होते हैं(सामान्य तौर पर)।किसी एक गाने में वैसे सभी अंतरों की धुन एक सी होती है ।लेकिन यह संगीतकार पे निर्भर करता है कि वह गाने को कैसा चाहता है।जैसे कि इस गाने “दर्द ए दिल दर्द ए जिगर” में तीन अंतरे हैं और तीनों की धुन अलग है।ऐसा भी हो सकता है कि मुखड़े और अंतरे की धुन एक सी हो,जैसे कि इस गाने “एक लड़की को देखा” में है।

एक अच्छे गीतकार कि पहचान यह है कि उसके पास शब्दों का भंडार होता।वह किसी भी धुन के हिसाब से उसपे शब्द पिरो सकता है।

फिल्मी गानों में गीतकार जो शब्द डालता है वो फिल्म के सीन या “सिचुएशन” पर भी बहुत हद तक निर्भर करता है,ऐसा नहीं है कि किसी दर्द भरे दृश्य में आप खुशी से भरे शब्द गाने में डालें।

यह कहा जा सकता है कि एक गीतकार गाना धुन और सिचुएशन दोनों को ध्यान में रखकर लिखता है।

अगर संगीतकार की अधिक चलती है तो गाने में अधिक प्रभाव उसका पड़ेगा और अगर गीतकार कि अधिक चलती है तो उसके हिसाब से गाने कि धुन में बदलाव भी किए जा सकते है।

वैसे आमतौर पर संगीतकार की ही अधिक चलती है।

कई ऐसे भी गाने है जिनको लिखा पहले गया और उनकी धुन बाद में बनाई गई जैसे “चलो एक बार फिर से” व ” चौदहवीं का चांद हो” आदि।

कुल मिला के एक गीतकार शब्दों का खिलाड़ी, सिचुएशन को समझने वाला और धुन को समझने वाला व्यक्ति होता है। -राहुल सिंह

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