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आदिवासियों की पहचान और अधिकारों पर हमले बंद हो: आदिवासी संघर्ष मोर्चा

09 जनवरी, डोंबारी संघर्ष दिवस के अवसर पर

रायपुर (पब्लिक फोरम)। 09 जनवरी, 1900 को डोंबारी बुरु (झारखंड) में बिरसा मुंडा ने ‘अबुआ दिसुम, अबुआ राज’ (हमारा देस, हमारा राज) नारे के साथ अंग्रेजों और महाजनों से आजादी का संघर्ष छेड़ा था। “उलगुलान” की घोषणा की थी. सौ से अधिक मुंडा विद्रोहियों ने ब्रिटिश सेना से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।

आज आदिवासियों को आजादी के बाद के भारत में अपनी पहचान और अधिकारों पर सबसे बड़े हमले का सामना करना पड़ रहा है।

आदिवासी संघर्ष मोर्चा, छत्तीसगढ़ से बी.एल नेताम, भूपेंद्र गोंड तथा आर.पी गजेंद्र ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि प्रो-कॉरपोरेट सरकार की नीतियों ने आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन और प्राकृतिक संसाधनों की लूट की छूट कंपनियों को दे दी है। खदानों, बांधों, राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों आदि के नाम पर कॉरपोरेट कब्जा और विस्थापन आदिवासियों पर थोपा जा रहा है। पूरे मध्य भारत में तथाकथित विकास परियोजनाओं के नाम पर आदिवासियों को उनकी ज़मीन से बेदखल कर दिया जा रहा है। दूसरी ओर, पूर्वोत्तर राज्यों में आदिवासियों को सशस्त्र बलों के हाथों अन्यायपूर्ण ‘विशेष सशस्त्र बल अधिनियम’ के दुरपयोग का शिकार होना पड़ रहा है। सशस्त्र बलों के हाथों नागालैंड में 14 आदिवासियों का नरसंहार इसके हाल का ताजा उदाहरण है। दक्षिण भारत में आदिवासियों को 5 वीं अनुसूची के संवैधानिक संरक्षण से वंचित रखा गया है।

देश भर में जमींदारी, सूदखोरी, आदिवासियों को गुलाम और लाचार बनाने जुड़वां हथियार है। आदिवासियों को बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक की पहुंच से वंचित रखा जाता है। किसी भी आदिवासी प्रतिरोध को विकास-विरोधी एवं राष्ट्रविरोधी कृत्य करार दिया जाता है और बर्बर दमन और सुनियोजित उत्पीड़न द्वारा कुचल दिया जाता है। इस आर्थिक बेदखली और राज्य दमन के साथ-साथ, आदिवासियों को तीखे सांस्कृतिक हमले का भी सामना करना पड़ रहा है। आर.एस.एस. संगठन के द्वारा आदिवासियों को धार्मिक आधार पर विभाजित करने के लिए लगातार दिन-रात साजिश किया जा रहा है।

आज इन्हीं स्थितियों में आदिवासी अपनी सांस्कृतिक पहचान और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए चल रहे कॉर्पोरेट एवं सांप्रदायिक आक्रमण, जमींदारी और सूदखोरी के खिलाफ दृढ़ता से लड़ाई लड़ रहे हैं।

‘आदिवासी संघर्ष मोर्चा’ बिरसा मुंडा के उलगुलान के इस खास दिन, डोंबारी संघर्ष दिवस के अवसर पर उत्पीड़न और कॉरपोरेट गुलामी के खिलाफ आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई तेज करने का संकल्प लेता है।

कॉरपोरेट लूट का विरोध करें, मोदी राज को ध्वस्त करें।
आदिवासियों की भूमि-छिनतइ खत्म करें।
सभी आदिवासी क्षेत्रों में संविधान की 5वीं अनुसूची को लागू करें।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 को अक्षरश: लागू करें।
वन विभाग, पुलिस और सशस्त्र बलों के हाथों आदिवासियों पर हमले को समाप्त करें।

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